धूसर परिदृश्य में खिला इंद्रधनुष का एक टुकड़ा

पत्थरों पर रखा इंद्रधनुषी छाता, भूली हुई भावनाओं को जगा देता है। एक रंग भी दिल की पूरी तस्वीर को बदल सकता है।


उस दिन लहरें जोर से टकरा रही थीं,
और मैं एक रंगहीन दुनिया में थोड़ी देर के लिए ठहर गया।

ऊँचे पर्वत काले बादलों को गले लगाए खड़े थे,
पानी की सतह हवा में धीरे-धीरे कांप रही थी।
मानो यह कोई फिल्म का दृश्य हो जहाँ सारी आवाज़ें
कहीं खो गई हों और हर चीज़ बस धूसर लगती हो।

तभी,
पत्थरों के ऊपर रखा इंद्रधनुषी छाता
पूरे दृश्य को बदल कर रख देता है।

मैं सोचता था कि इस दुनिया से रंग चले गए हैं,
पर असल में वे रंग
बस छुपे हुए थे, देखे जाने की प्रतीक्षा में।

लाल ने साहस की फुसफुसाहट दी,
नारंगी ने गर्मजोशी की याद दिलाई,
पीला मुस्कान लाया।
हरा शांति की एक गहरी सांस,
नीला चुपचाप सांत्वना,
नीलापन गहरे चिंतन की भावना,
और बैंगनी ने बिना शब्दों के दिल को सहलाया।

शायद वह छाता
मेरे अंदर छिपे रंगों का प्रतिबिंब था।

प्रकृति हमेशा सच्ची होती है।
वो न तो कुछ छुपाती है,
न ही सजावट करती है।
बस जैसी है, वैसी रहती है।

लेकिन हम,
हम हर बार उसे बदलने की कोशिश करते हैं।
और अधिक रोशनी जोड़ते हैं,
आकार बदलना चाहते हैं,
हर चीज़ को तेज़ करना चाहते हैं।

और इस प्रक्रिया में,
हम मूल सुंदरता को खो देते हैं।

हवा कुछ नहीं कहती,
लेकिन वह हमेशा सच्चाई कहती है।

पत्थर ठंडे थे,
लेकिन छाता—
उसमें इंसान की गर्मी भरी थी।

क्या वह किसी की थकावट का विश्राम था?
या जानबूझकर छोड़ी गई आशा?
कोई नहीं जानता।
लेकिन वह छाता
निश्चित रूप से किसी का दिल था।

ज़िंदगी भी कुछ वैसी ही है।

अभी यह पर्वतों की तरह भारी,
और पत्थरों की तरह कठोर लग सकती है।
लेकिन उस पर रखा हुआ एक छोटा सा “अर्थ”
पूरे दृश्य को बदल सकता है।

चाहे वह प्यार हो, कोई याद,
या बस थोड़ी सी हिम्मत।

उस दिन मैं,
उस इंद्रधनुषी छाते के सामने
काफी देर तक खड़ा रहा।

और चुपचाप,
अपने मन के धूसर कैनवास पर
एक-एक कर रंग
फिर से भरना शुरू किया।

अब भागने की ज़रूरत नहीं,
फिर से शुरू करना बिलकुल ठीक है—
वह छोटा सा छाता यही कह रहा था।

एक टिप्पणी भेजें