पत्तों में लिपटे पत्थर की तरह, मौन भी बहुत कुछ कहता है। कभी-कभी केवल उपस्थित रहना ही सबसे बड़ी शक्ति होता है।
एक गर्म दोपहर,
मैं इस पत्थर से मिला।
पत्तियाँ उसे धीरे से घेर रही थीं,
जैसे वे उसे हमेशा से जानती हों।
पत्थर कुछ नहीं बोला।
पत्तियाँ झुकीं और अपनी उपस्थिति से बात की।
समय ने उनके बीच एक शांत रिश्ता बुन दिया था।
शायद यह पत्थर दशकों से यहाँ है।
लोग गुजरते रहे,
मौसम बदलते रहे,
और यह वहीं रहा।
पत्तियाँ बदलती हैं—
बढ़ती हैं, सूखती हैं, गिरती हैं, फिर लौटती हैं।
हर साल अपना निशान छोड़ जाती हैं।
हमारे जीवन में भी ऐसे "पत्थर" होते हैं।
जिन्हें बोलने की ज़रूरत नहीं,
पर जो हमेशा साथ होते हैं।
कभी-कभी, हम खुद ऐसे पत्थर बन जाते हैं।
किसी और के लिए एक स्थायी सहारा।
जीवन हमेशा चमकदार नहीं होता।
यह छोटे, शांत क्षणों से भरा होता है।
जैसे पत्ती पत्थर को थामे हो।
आज इस पत्थर ने मुझसे पूछा—
मेरे जीवन का पत्थर कौन है?
और क्या मैं किसी के लिए ऐसा हूँ?
चमकने की ज़रूरत नहीं।
बोलने की ज़रूरत नहीं।
बस वहाँ होना ही बहुत कुछ होता है।


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