कंक्रीट के पास चुपचाप खिले गुलाबी फूल, जो बिना कुछ कहे हमें वो सुकून देते हैं जो हम कहीं खो चुके थे।
धूप तेज़ थी उस दिन।
शहर की भागती लय में मैं यूँ ही चल रहा था
कि अचानक कुछ पैरों के पास चमक उठा।
वो एक फूल था।
ना कोई सजाया गया बग़ीचा,
बस एक ग्रे दीवार के नीचे खिले गुलाबी फूल।
शानदार नहीं, पर इसलिए ही तो आँखों में बस गए।
कुछ पंखुड़ियाँ मुड़ी हुई थीं,
एक ओर लोहे की पाइप उलझी थी,
पर उसी उलझन में सूरज की रौशनी समेटे
ये फूल खिले थे—
ना दिखाने के लिए, ना वाहवाही के लिए,
बस जीने के लिए।
लोग तेज़ी से निकल गए,
एक आवारा बिल्ली भी चुपचाप गुज़र गई,
किसी ने इन छोटे जीवनों की ओर नहीं देखा।
पर वो खिले थे,
शांत और शानदार।
मैं कुछ देर रुका,
कैमरा निकाला।
इन रोशनी में भीगे चेहरों को सहेज लेना चाहता था।
ये पल जो सिर्फ मैंने देखा,
बहुत क़ीमती लग रहा था।
ज़िंदगी में कभी-कभी
बिना कारण अकेलापन महसूस होता है,
जैसे कोई हमें देख नहीं रहा।
पर इन फूलों की तरह,
सिर्फ ज़िंदा रहना ही काफ़ी है—
हम ये भूल जाते हैं।
एक छोटा सा शांत जीवन
मेरे पास चुपचाप
मुझे सिखा गया—
“जहाँ तुम अभी हो,
वहीं ठीक हो।”
लौटते क़दम कुछ हल्के लगे।
फूल कुछ नहीं बोले,
पर उनकी ख़ामोशी ने मुझे सुकून दिया।


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