शहर के ऊपर ठहरा एक चमत्कारी पल

शहर के ऊपर दिखा दोहरा इंद्रधनुष,
एक पल के लिए ज़िंदगी थमी और
छोड़ गया एक चुपचाप उम्मीद और चमत्कार की याद।


आज का आसमान किसी अनकहे उपहार जैसा था।

मानसून के आखिरी छोर पर,
धूसर बादलों के बीच से इंद्रधनुष झाँक उठा।
एक इंद्रधनुष अपने आप में चमत्कार है,
लेकिन उसके साथ जुड़ा एक और हल्का रंगीन धनुष
किसी अदृश्य सहारे जैसा लगा।

भीगे हुए छतरियों के बीच,
शहर की हरी तंबुओं के ऊपर वह इंद्रधनुष
थोड़ी देर के लिए ही सही,
पर पूरी दुनिया को चुपचाप समेट गया।

लोगों ने अपने फोन निकाले,
बच्चों ने हाथ बढ़ाया।
और हम सबने एक साथ महसूस किया—
“यह पल यूँ ही नहीं गुजरना चाहिए।”

इंद्रधनुष ज़्यादा देर नहीं ठहरा।
बादल अभी भी भारी थे, सूरज अब भी शर्मीला था,
लेकिन उस पल में
इंद्रधनुष ने दुनिया को दो बार गले लगाया।

मैंने वह दृश्य देखा और सोचा—
क्या हमारे दिनों में भी
ऐसे ही छोटे-छोटे चमत्कार नहीं छिपे होते?

जैसे बारिश के बाद इंद्रधनुष आता है,
वैसे ही दुख के बाद भी कोई आशा आती है।
या सिर्फ एक ख़ामोश सा ठहराव,
लेकिन वह होता है।

शायद इंद्रधनुष बस प्रकाश की एक माया है।
लेकिन यही माया
लोगों को रोक देती है,
और सबकी नज़रें एक ही आकाश की ओर जाती हैं।

वह साझा ख़ामोशी।
वह चुपचाप श्रद्धा।
कभी-कभी, बस वही काफी होता है।

शहर की एक सामान्य सी दोपहर में,
जब मैंने ऊपर देखा,
तो आसमान साधारण नहीं था।
और उस एक पल में,
मैं भी साधारण नहीं था।

जहाँ मैंने थोड़ी देर ठहर कर देखा,
वहीं मैंने इंद्रधनुष को पाया,
जो चुपचाप मुझे बाँहों में ले गया।

वह दृश्य धीरे-धीरे
मेरी स्मृति में उतर गया।
ताकि कभी फिर से याद कर सकूँ,
और बारिश के दिन मुस्कुरा सकूँ।

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