शहर के फव्वारे में सुकून की बूँदें छिपी हैं। भागदौड़ में रुककर देखो, पानी जैसे कहता है: "सब ठीक है, तुम अच्छा कर रहे हो।"
फव्वारा हमेशा दिल को छू जाता है।
शहर के बीचोंबीच अचानक ऊपर उठता पानी,
जैसे वह हमारे उस पल को समझ रहा हो
जब हम बस थोड़ी देर के लिए दुनिया को भूलना चाहते हैं।
आज जो फव्वारा मैंने देखा,
वह काले और सफेद टाइल्स पर
स्वतंत्रता से नाचती बूंदों जैसा था।
जल्दबाज़ी में बढ़ते कदम
वहां आकर ठहर गए।
पानी को निहारते हुए
विचार भी थमने लगते हैं।
न कोई नियम, न कोई पूर्वानुमान,
इसीलिए वह और भी अधिक मुक्त लगता है,
और दिल को सुकून देता है।
फव्वारा कुछ नहीं कहता,
लेकिन पूरे दिन को ढांढस बंधाता है।
“सब ठीक है, तुम अच्छा कर रहे हो।”
ऐसा लगता है जैसे वह फुसफुसा रहा हो।
पीछे एक पत्थर पर
किसी की लिखी पंक्तियाँ उकेरी गई हैं।
मैंने पूरा नहीं पढ़ा,
लेकिन लगता है किसी ने उस जगह बैठकर
अपने जीवन पर विचार किया होगा।
उसके सामने बहता पानी
मानो बीते समय को भिगो रहा हो।
कभी-कभी हम इतने व्यस्त होते हैं
कि ऐसी शांत दृश्यों को देख भी नहीं पाते।
पर जब हम रुकते हैं,
शहर के पार्क के नाम तले
प्रकृति की गोद महसूस होती है।
बच्चों की हँसी,
बुज़ुर्गों के धीमे कदम,
हवा के साथ उठते पानी की धार।
यह सब मिलकर एक ऐसा दृश्य बनाते हैं
जो मन को एक छोटी सी सैर में ही साफ कर देता है।
हमें कितनी बार
ऐसा समय तोहफे में मिलता है?
न कोई लंबी यात्रा, न कोई खास उद्देश्य,
बस रुककर देखने वाला एक दृश्य,
जो जीवन को और गहरा बना देता है।
आज का फव्वारा
केवल एक संरचना नहीं है।
यह किसी की याद बन जाता है,
एक दृश्य जो कभी अचानक याद आ जाता है।
पता नहीं फिर कब लौटूंगा,
लेकिन इस पल को दिल में समेटता हूँ।
जैसे पानी उठता है, बिखरता है, फिर से जुड़ता है,
वैसे ही हमारा मन भी फिर जुड़कर
थोड़ा और मजबूत हो जाए—यही कामना है।

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