खिड़की के बाहर की धीमी तस्वीर, जहाँ दिल ठहर जाता है

खिड़की से दिखते खेतों और पहाड़ों के दृश्य में दिल को सुकून मिलता है—व्यस्त जीवन में कुछ पल ठहरने की प्रेरणा।


ट्रेन तेज़ चल रही है।
फिर भी खिड़की के बाहर का दृश्य धीरे बहता है।

ट्रेन की बड़ी खिड़की से जो दिखता है,
वह रोज़मर्रा की ज़िंदगी की शांत तस्वीर है।
बिजली की लाइनें और पटरियाँ,
उनके पीछे फैले हरे खेत,
और हल्के-हल्के लहराते धान के खेत
मेरे व्यस्त मन को शांति से भर देते हैं।

यह दृश्य परिचित भी है और नया भी।
जैसे-जैसे शहर पीछे छूटता है,
समय धीमा होता जाता है और मन भी शांत।
प्लास्टिक की छतों के नीचे शायद कोई काम कर रहा हो,
लेकिन दूर से सब कुछ एक शांत चित्र जैसा लगता है।
गीली ज़मीन, बिखरे हुए तंबू,
और ऊपर बहते हल्के बादल—
सब कुछ कहता है कि धीमा चलना भी ठीक है।

ट्रेन फिर रफ़्तार पकड़ती है,
लेकिन मेरी नज़र उस दृश्य में अटकी रहती है।
उस गुज़रते पल में
बिना वजह एक सुकून मिल जाता है।
बचपन में दादी के गाँव की याद दिलाता है।
तब वह शांति महसूस नहीं हुई थी,
पर अब दिल में बस जाती है।

शहर में सब कुछ रुकता नहीं,
लेकिन इस दृश्य में सब कुछ थम जाता है।
धीरे चलना ठीक है,
कुछ पल के लिए खो जाना भी।

खेत, पहाड़ और हल्का बादल भरा आसमान—
यह दृश्य शायद वह सुकून है
जो हमने भूल रखा है।
व्यस्त दिनों के बीच
ऐसे शांत लम्हों को पकड़ना चाहता हूँ।
ट्रेन आगे बढ़ती है,
लेकिन दिल यहीं रह जाता है।

धीरे-धीरे
एक गहरी शांति दिल में उतर जाती है।
यह लम्हा, यही काफी है।

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