रोशनी की ओर शांत स्टेशन।
प्रतीक्षा के इस पल में हम आशा को महसूस करते हैं और
अपनी अगली यात्रा के लिए साहस पाते हैं।
रेलवे स्टेशन हमेशा विदाई और प्रतीक्षा का स्थान होता है।
कोई विदा लेता है, कोई नया सफर शुरू करता है।
इस तस्वीर में स्टेशन खासकर शांत है।
ना कोई हलचल, ना ही किसी ट्रेन की आवाज़।
बस पटरियाँ, जो चुपचाप उजाले की ओर बढ़ रही हैं।
प्लेटफॉर्म के एक कोने से यह दृश्य देखने पर
दिल में एक अजीब सी भावनाएँ उठती हैं।
जो ट्रेन अभी नहीं आई, वो हमारी भविष्य जैसी लगती है—
जो आएगी ज़रूर, बस कब, ये पता नहीं।
हम उस उजाले की ओर बढ़ते हैं, चाहे रास्ता न पता हो।
प्रतीक्षा आसान नहीं होती, खासकर जब अंत नजर न आए।
पर स्टेशन कहता है—
ट्रेन ज़रूर आएगी, हम फिर से चल पड़ेंगे।
यह ठहराव भी जीवन का हिस्सा है।
शायद वह सफेद उजाला आशा है।
जो धुंधले आकृति दिखती हैं,
वो किसी का इंतज़ार कर रही हो सकती हैं, या किसी विदा की परछाई।
यह दृश्य किसी भी तरह से देखा जाए, एक गर्माहट है इसमें।
ठंडी पटरियों और कंक्रीट के बीच आती रौशनी
बिना शब्दों के भी भावनाएं जगा देती है।
यह स्टेशन एक छोटा सा विराम है।
मन भी यहाँ थोड़ी देर के लिए शांत हो जाता है।
दुनिया कहती है— चलते रहो।
पर यह तस्वीर कहती है—
कभी-कभी रुक जाना भी ठीक है।
ट्रेन के बिना भी जीवन चलता रहता है।
इस शांत प्लेटफॉर्म पर हम अपना-अपना समय जीते हैं।
शायद ज़िंदगी भी ऐसे ही पटरियों जैसी है—
सीधी, पर मंज़िल अनजानी।
महत्वपूर्ण है— दोबारा शुरू होने का विश्वास।
आज की इस खामोशी में,
हम अगली यात्रा के लिए थोड़ा हौसला पाते हैं।
रोशनी की ओर, चुपचाप और दृढ़ता से।


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