शांत जल, तीन पक्षियों की बातचीत

 नदी किनारे तीन पक्षियों की मौन संगति। कोई शब्द नहीं, सिर्फ उपस्थिति। एक सिखावन—कुछ किए बिना भी पर्याप्त होना।

जल के किनारे ऐसा लगा जैसे कुछ नहीं हो रहा।
लेकिन ध्यान से देखें तो हर हलचल एक कहानी कहती है।

धूसर बगुला चुपचाप एक ओर देख रहा था।
शायद किसी का इंतजार कर रहा था,
या फिर किसी बीते पल को छोड़ नहीं पा रहा था।

उसकी नजर के अंत में एक बत्तख थी,
जो पानी को चीरते हुए आगे बढ़ रही थी।
अकेली थी, पर डरी नहीं थी।
तरंगों पर तैरती उसकी चाल
कहीं न कहीं ईर्ष्या को जगा गई।

एक तरफ खड़ी सफेद बगुली
मानो खुद प्रकाश बिखेर रही हो।
शांति के बीच एक मजबूत उपस्थिति,
पीछे की धारा भी
जैसे उसके चारों ओर बह रही हो।

तीनों पक्षी दूरी बनाए हुए थे,
लेकिन एक ही समय और स्थान साझा कर रहे थे।
शब्दों और आवाज़ के बिना भी
वे एक-दूसरे को महसूस करते रहे होंगे।

नदी चुपचाप बहती रही,
पत्थर अपनी जगह बने रहे,
और पक्षी अपनी लय में जीते रहे।

हम अक्सर बहुत कुछ करना चाहते हैं,
बोलना, हासिल करना, पा लेना।
और फिर थक जाते हैं, घबरा जाते हैं।

पर आज इस नदी किनारे
मैंने सीखा कि केवल ‘मौजूद होना’ ही काफी होता है।

तीनों पक्षियों ने कुछ नहीं कहा।
लेकिन उनकी चुप्पी ने इस दिन को गर्माहट से भर दिया।

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