समंदर के पार, हवा के साथ चलती दोपहर

 शांत समंदर, पुल और हवा की छाया में एक पल रुकता है। प्रकृति की गोद में मन को सुकून देने वाला, एक गहरा अनुभव।

समंदर पर फैली क्षितिज की रेखा पर
हल्की धूप फैली हुई है।
ना बहुत तेज़, ना बहुत मंद—
बस एकदम सही गर्मजोशी वाली रौशनी।

समंदर के पार खड़ा पुल
दो शहरों को जोड़ने वाला इशारा लगता है।
दूर से एक रेखा सा दिखता है,
पर उसमें कई लोगों की व्यस्त दिनचर्या छुपी है।
कंटेनरों से भरा बंदरगाह,
हवा के साथ दौड़ती नौकाएं,
ये सब पुल के नीचे मिलते हैं।

समंदर को देखते हुए
लगता है वक्त थोड़ी देर के लिए रुक गया हो।
लहरें निरंतर आती हैं,
हवा पानी की सतह को छूती हुई गुजरती है।
उस आवाज़ को सुनो,
तो उलझन भरा दिल भी थोड़ा शांत हो जाता है।
किसी भी शब्द से गहरा,
किसी भी संगीत से कोमल, ये मन को छूता है।

करीब है फिर भी दूर,
दूर है फिर भी जाना-पहचाना,
यह जगह अजनबी नहीं लगती।
नीले पानी की लहरें, सफेद बादल,
और पुल पर बिखरी धूप
किसी देखी गई याद जैसी लगती है।
शायद इसीलिए
इस दृश्य के सामने खड़े होते ही मन शांत हो जाता है।

हम समंदर देखने जाते हैं।
कभी मन भारी होता है,
कभी बस यूँ ही चलना चाहते हैं।
वो समंदर हमेशा वहीं होता है।
चुपचाप, किसी का वक्त अपने में समेटे।
दुख भी, खुशी भी, बस समेट लेता है।

दृश्य कुछ नहीं कहता,
पर उसमें कई कहानियाँ होती हैं।
इस समंदर में कई दिन समाए होंगे।
इस पुल में, बहते पानी में,
और दूर तैरती नावों में
किसी का आज समाया होगा।

इस रुकावट की घड़ी में
मैं खुद को दूर से देखता हूँ।
डोलती लहरों की तरह,
शांत हवा की तरह,
मेरा दिल भी एक दिन और मजबूत होगा।

और फिर, एक नया दिन शुरू होगा।
इस समंदर की तरह, जो कभी नहीं बदलता।

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