जहाँ सूरज ढलता है, वहीं दिल ठहर जाता है

शहर के पार्क में ढलता सूरज, मन को शांति देता है। एक ठहराव, एक नज़ारा, और दिल धीरे-धीरे उजास से भर उठता है।


दिन का अंत हमेशा चुपचाप आता है।
भीड़-भाड़ वाले शहर के एक शांत कोने में,
मैं बस खामोशी से सूर्यास्त को निहारता रहा।

आसमान को रंगता हुआ नारंगी प्रकाश
ना तो गर्म था, ना ठंडा।
वह बस धीरे से, बहुत धीरे से
दुनिया की सारी आवाज़ों को समेट ले गया।

जैसे-जैसे रोशनी नीचे उतरती गई,
मेरा दिल भी धीरे-धीरे शांत होता गया।
ऐसा लगा जैसे नरम धूप
मेरे दिल की थकान को धीरे-धीरे पोंछ रही हो।

पेड़ों की छाया के बीच छनती हुई रोशनी
किसी की कोमल दिलासा जैसी लगी।
ठंडी और व्यस्त आज की यह दिनचर्या
अब बोझिल नहीं लग रही थी।

मैं अकेला था, लेकिन तनहा नहीं।
खामोशी में मेरा दिल बोला,
"अब सब ठीक है। यहाँ सब ठीक है।"
यह छोटा सा दिलासा आश्चर्यजनक रूप से गूंज उठा।

दृश्य ने मुझसे कहा—
ठहर जाना ठीक है,
इस पल को बस देखना भी ठीक है।

हम अक्सर भूल जाते हैं कि
एक दिन का अंत कितना सुंदर हो सकता है।
तो कभी-कभी कुछ मत करो।
बस बैठो और देखो—
जब दुनिया रंगों में रंगी जाती है।

उसी पल में, हमारे दिल भी
धीरे-धीरे रोशनी से भरने लगते हैं।

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