सांझ की बस्ती, शांत नज़ारों की दरार में

शांत बस्ती में सांझ की छाया तले, इमारतें और लोग मिलकर रोज़मर्रा की दौड़ में एक छोटा सा ठहराव रचते हैं।

मुलायम धूप के साथ एक दोपहर,
शहर की एक गली ने चुपचाप साँस ली।

धूसर छतें और साफ-सुथरी दीवारें
जैसे एक शांत कोरस गा रही हों।
अधूरे भवनों के बीच हल्के नीले मचान
हवा में झूलते हैं,
जो बताते हैं कि यह इलाका अभी भी बन रहा है।

130 नंबर वाली सफेद इमारत के सामने
सफेद और काली कारें शांत खड़ी हैं।
यह गली शांति के लिए बनी है, न कि हलचल के लिए।
इमारतें जैसे किसी स्याही चित्र की तरह
अपने-अपने खिड़की से सांझ को पकड़ रही हैं।

दूर, हरियाली और घुमावदार रास्ते
इस शहर की कोमलता को दर्शाते हैं।
कोई चल रहा है,
कोई खिड़की से देख रहा होगा।

नीला बस रुका है,
और एक व्यक्ति छत पर सुकून में बैठा है।
छाया बढ़ती है, दिन ढलता है।
कहीं से रसोई की खुशबू आती है,
और ईंटें उसे अपने भीतर समेट लेती हैं।

इस मोहल्ले की भावना साफ है।
सीधी रेखाओं के बीच बहती कोमल आत्मीयता।
शैली में सुंदर पर सरल,
शांत मगर मजबूत।

शहर की ऐसी दरारों में
हम खुद को देखते हैं।
चमक और गति के बीच एक विराम।
सांझ, खामोशी और खाली जगहों से बुनी
आज की एक छोटी-सी साँस थी।

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